इस कश्मकश में खुद को उलझाए रखा था हमने,
आसमान को जमीन से मिलाने की जिद्द जो की थी हमने,
हर नामुमकिन कोशिश भी किया,
और नतीजे की परवा न किया,
थी जुनून आसमान में खुशियों का रंग बिखेरू..
थी शिद्दत जमीन के इश्क से आसमान को करूं रूबरू..
अब जब हुआ सबेरा,
और पर्दा उठा इस बेवकूफी से..
चाहे करे कोशिश लाख मरतबा,
ना मिल पाएगा आसमान जमीन से..
माना मिल ना सकेंगे ये एक दूजे से,
मगर एक दूजे के वगर हैं अधूरे…
भले हो इनके रास्ते अलग अलग से,
मंजर है एक और एक दूजे को करते हैं पूरे…
✍🏻 Prabhamayee Parida
