आज वक्त के लहरों में खुद को झांका,
तकदीर के खोज में कहीं कुछ बदला तो नहीं…
गुजरासा वक्त और बदले हालात में,
इम्तिहान मेरा तब भी था और आज भी है यहीं…
यादों की धागे में खुद को बांधने की आदत जो है,
ज़िंदगी के बदलाव में खुद को ढालने की मशक्कत भी है..
एक पल में महफिल तो अगले ही पल सन्नाटा है यहीं..
वक्त भी बदला और लोग भी बदले ,
मगर में हूं वहीं के वहीं…
कोशिश की लाख मरतबा,
नए लोगों के बीच एक नई दुनिया बसाऊं..
मगर चेहरे पर नकाब मैं पढ़ ही न पाऊं..
सीधी बात समझने की आदत जो ठहरी,
छल कपट की खेर तो में रखना पाऊं..
✍🏻 prabhamayee parida
