
खुशियों से है नाराजगी,
पलकों को इश्क है अश्कों से..
लाख मरतबा किया कोशिश
नाता टूट जाए कलम से…
नींद की है शिकायत मेरे तहरीर से,
पलकों को ना जगाया कर..
भावनाओं की भी है यही गुजारिश,
दास्तान मेरी जिंदगी का सुन लिया कर..
लब खामोश ही महफूज है,
बोलने की जुरमाना अदा जो कर चुके हैं…
अब तो अल्फाजों को नज़्म में पिरोने दे,
अपने ही किस्से का मुसन्निफ़ बन चुके है…
सियाही खतम होने तक,
अब ये कलम रुकेगा नहीं…
कोरा कागज ने भी कीया है जिद्द,
अब ये कोरा रहेगा नहीं…
हर एक लम्हा तेरे पन्नों में उतरना है,
बीती बातें तुझे तो सुनाना है,
खुद से ज्यादा एतबार तुझपे है, मेरी डायरी
बस एक तुझे ही अपना माना है…
✍️ Prabhamayee Parida