मेरी मां…
एक अकेली तू कितना संभालती है..
दुनिया भर का बोझ अपने कंधो में जो डालती है..
ना दी मौका कभी हमे तकलीफ उठाने को,
हस हस कर खुद ही हमारी तकलीफ झेल जाति है…
मेरी मां,
मांगा कभी तो तूने माना नही किया..
पापा को गुजारिश करके, बात भी मनवाया..
जब कभी हुई गलतियां हमसे,
सुधारने के लिए तूने छड़ी भी उठाया..
मेरी मां,
कभी सरहना किया लोगों के बीच,
तो कभी बुरी नजरों से बचाया भी..
सपनो को हासिल करने के लिए हौसला तो दिया, तो कभी चुप चुप के हमारी ख्वाइशों को पंख दिलाया भी.
आज तुझे जरूरत है हमारी,
बोलने से तू कतराना नहीं…
तेरी ख्वाइशें अब हमारी है,
जताने में हिचकिचाना नहीं..
तेरी ममता का कर्ज तो शायद चुकाना पाएंगे..
बस तेरे लिए कुछ कर पाए तो खुद को ही खुश नसीब मानलेंगे…
Written By Prabhamayee Parida
