ए – नादान,
क्यूं ये धरती को मिटाने चला है..
हवाओं में जहर तू घोलने लगा है..
ना काट इन पेड़ों को तू,
खुद को तबाही के तरफ तू खींचने लगा है…
ना मिलेगा छांव ,
धूप से बचने के लिए..
ना नसीब होगी ताजी हवा,
खुल के सांस लेने के लिए..
ना हवाएं सरसरायेंगे..
ना पंछियों के आवाज से वादियां गुनगुनाएंगे…
फूलों की खुशबू से बाग ना महकेगा,
ना तितलियां फूलों पर मंडराएंगे…
हो सके तो खूब सारे पौधे तू लगाना,
ये दुनिया फिर से हरियाली हो जाए…
पेड़ों की ना सही , अपनी जान की परवा कर,
शायद इस धरती पर कुदरत की रहमत हो जाए…
Written by Prabhamayee Parida
