इंसान कहलाते हम पर नजाने बटे कितने तरीको से।
कभी धर्म के नाम पे
तो कभी जात के नाम पे…
आज फिर से एक जंग जारी आरक्षण को लेकर..
फिर से बने दुश्मन एक दूसरे के ,जात के आड पर…
सवाल मेरी बस इतनी सी है..
समझो तो बात बस छोटी सी है..
क्यों बने पहले वजह उस आरक्षण के ..
ये वजह क्यूं यादों से छूटी सी है ।
हमने ही बनाया काम को छोटा या बड़ा..
फिर भी क्यूं इंसान है जिद पे अड़ा।
क्यों quarantine में पंडितो ने किया खाने से इनकार..
क्यों आज भी शादियों में जात पात को लेकर होती तकरार।
आरक्षण तो बस एक लकीर है जात पात के बीच में…
बन चुका है ये मुद्दा राजनीति के खेल में।
अगर इन मुद्दों को भुला के सबको एक ही मान लें..
फिर शायद आरक्षण नाम के बीमारी को जड़ से उखाड़ ले।
हो सके तो अपनी सोच बदलो..
देश के तरक्की के खातिर अपना हात बढ़ालो…
फिर होगा नया समाज का निर्माण..
मेहनत करने वालों को ही मिलेगा सम्मान।
Written by prabhamayee parida