क्यूं ये हवा बेरुखी सी है…
राहें भी कुछ धुंधली सी है..
ख़ामोश रहती हूं अक्सर आज कल,
फिर भी सोर सेहनई सी गूंजती है।
झिझक ती हूं बयान करने से…
क्यूं की लोग अक्सर सलाह अपने सहूलियत से देते हैं।
गुजरते हैं हम उलझनों से…
पर चंद बातों से लोग उपाय भी तय करते हैं।
अपने जज्बात जाहिर करने से बेहतर है ख़ामोश रहना…
गुमशुदा ना हो जाए , जरूरी है ख़ामोशी को कलम के लीवाज में रखना।
Written by prabhamayee Parida