जिंदगी सफर बडा, राह भी अजीब हैं।
हर एक मुकाम के लिए, मुश्किलें खडी भी हैं।
इस पथ को चुनू या लौट जाऊं यहां से,
मन के सामने विडम्बना अजीब है।
फिर ख्याल आता कभी, कि क्यूं विराम की तलाश में, मन मचल रहा मेरा
ऊँचाई कितनी भी हो, फासला तय कदम ही करे।
मन जो ठान ले एक बार तो ऊँचाई भी मैदान बनें।
Written by Asha….
Promoting this poem on behalf of a strong woman who shared her message for all.
Kindly help me in sharing her message.
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