कहते हैं भरोसे पे दुनिया कायम है,
पर ये भरोसा है कहां?
झूठ इस कदर चारोऔर छाया है,
सच को नाजाने में ढूंडू कहां?
कभी अनजाने में जूठ को यकीन करलिया था,
अब तो होशो आवाज़ में जुठ को सच मान लेती हूं।
क्या करूं, ये कमबख्त ईमानदारी हमसे छूटती नहीं,
अब तो हर हाल में खुदगर्ज बन जाना चाहती हूं।
हर रिश्ते के खातिर, या कहूं हर मुकाम के लिए,
खुद को साबित किया हमने।
फिर भी जिस दर्जे के काबिल है हम,
उससे ना कभी पाया हमने।
जेहन में इतना है सवाल,
पर जवाब आज तक ना मिला।
इस फरेबी दुनिया में सच जु्ठ का,
चलता रहेगा ये सिलसिला।
Written by prabhamayee parida