घड़ी के कांटे की तरा समय खूब तेजी से भागे,
और उस वक्त के साथ पता न चला कब निकल आये इतने आगे. यूँ ही वक्त बदलता रहा, सफर युहीं चलता रहा.
बदली दुनिया, लोग भी बदले, और वक्त के सुर में हम भी बदले, पर शान से स्वाभिमान से आज भी जीते है और ये कायम रखेंगे खुद से हमारा ये वादा रहा.
ज़िन्दगी ने रुलाया तो कभी हसाया भी,
मुस्किलो के साथ जीना सिखाया भी,
खोने की अफ़सोस नही क्यों कि इस सफर में खुद कोपाया भी. अब थामना नही ,रुकना नही क्योंकि मंज़र अभी भी दूर कहीं, चलते जाना है मंजिल के राह में चाहे साथ कोई रहे या नहीं.
Written By
Prabhamayee Parida